दर्द-ए-दौर-ए-ज़माना है, थोड़ा धीरज रखो!
वो भी इतना पुराना है, थोड़ा धीरज रखो!
अंधेर मची रहती है, अन्धों की बस्ती में,
तिस पे राजा काना है, थोड़ा धीरज रखो!
यां पीपल के पेड़ों पर आमों का झुरमुट है,
रिपब्लिक ही बनाना है, थोड़ा धीरज रखो!
चुन-चुन कर भेजा है, चुन-चुन घर भेजेंगे,
चुनाव भी तो आना है, थोड़ा धीरज रखो!
दिल्ली की सर्दी में, जम जाती हैं तक़दीरें,
जो वो लोहा पिघलाना है, थोड़ा धीरज रखो!
सियासत के कोल्हू में अन्ना हो गन्ना हो,
उन्हें पिरते जाना है, थोड़ा धीरज रखो!
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