मेरी जिंदगी इक खुली किताब है लेकिन,
तेरे सवालों का इसमें कोई जवाब नहीं!
मैं जानता हूँ दर्द का मतलब,
हुआ मेरे भी साथ है वही सब,
मगर मेरा ये दर्द मेरा है,
यही इक दर्द है जीने का सबब,
और मर भी जाऊं तो कुछ खराब नहीं!
मेरी जिंदगी इक खुली किताब है लेकिन,
तेरे सवालों का इसमें कोई जवाब नहीं!
तुम्हारे अरमां जहाँ पे क़त्ल हुए,
उसी मकतल में खून मेरा बहा,
वहाँ उस जश्न में सबने देखा,
मगर है कोई जिसने कुछ भी कहा,
तुम्हारा क्या कहूँ मेरा ही कुछ हिसाब नहीं!
मेरी जिंदगी इक खुली किताब है लेकिन,
तेरे सवालों का इसमें कोई जवाब नहीं!
बादे-मर्ग, अब बची है बस एक आरज़ू,
कि जिस तरह बहा है वहाँ मेरा लहू,
वैसे ही किसी और को मरना नहीं पड़े,
ना मुसलसल चले इश्क-ए-दार की ये खू,
मैं तो चुना गया था, ये मेरा इंतखाब नहीं!
मेरी जिंदगी इक खुली किताब है लेकिन,
तेरे सवालों का इसमें कोई जवाब नहीं!