नूर-ए-सुब्ह हो मेरे, सुकून-ए-शब हो तुम,
तुम्हें जिस रंग में देखूं गरां ग़ज़ब हो तुम।
मेरे सब ज़ख़्म तुम्हें हंस के दुआ देते हैं,
मेरी सब मुस्कुराहटों के भी सबब हो तुम।
गुलाब, ख़ार, दवा, दर्द, खिजां, अब्र-ए-बहार
मेहर हो, क़हर हो, शाम, सहर, सब हो तुम।
तुम्हारे दश्ते तलब में सराब झिलमिल हैं,
जैसा मैं हूँ क्या वैसे तश्नालब हो तुम?
पलकें जो बंद करूँ तुम ही नज़र आते हो,
मैं तुमसे दूर हूँ पर मुझसे दूर कब हो तुम?
मेरा वजूद है सुजूद तेरे सजदे में
आगे क्या कहूँ कह दिया कि रब हो तुम।
तर्क-ए-तआल्लुक़ का ख़याल अस्ल में तुम्हारा था,
अब तुम ही रोते हो, काकिसी अजब हो तुम!
नूर-ए-सुब्ह: भोर की किरण | सुकून-ए-शब: रातों का सुकूं | गरां ग़ज़ब: बड़ी गज़ब | ख़ार: कांटे | खिजां: पतझड़ | अब्र: बादल |
दश्ते तलब: चाह का रेगिस्तान | सराब: मृगमरीचिका | तश्नालब: प्यासा | सुजूद: सजदे की अवस्था | तर्क-ए-तआल्लुक़: रिश्ते तोड़ना