जब तलक बज़्म में रौनक आई,
तमाशा बन गए तमाशाई!!
उगा जो शहर तो खामोश है झील,
लवासा तुम हो, मैं धराशाई!
जो अंजलि से काई उछाला करते थे,
उनके दामन पे पड़ गया काई!
उनकी टोपी लगाए फिरते थे,
जिनकी टोपी पर ही बन आई!
जो गाँधी थे आश्रम गए वापस,
ना रास आई उनको रुसवाई!
ना लगे आग, दाग तो लगेगा ही,
साफ़ दामन की हो पज़ीराई,
नित नए राज़ खुलते हैं यहाँ,
चौपट राजा का राज है भाई!
तब्सरा करते रहे आलिम साहिब,
सामईन लेते रहे जम्हाई!
इधर कांग्रेस है, उधर एनडीए,
यहाँ कुआं तो उस तरफ खाई!