इसी का रोना था
घर बहुत ही छोटा है
एक कमरे का घर नहीं होता
खोली है़, दड़बा है।
बड़े घर का सपना
पूरा हुआ तो अब
बहुत स्पेस है
रोने के लिए।
जो भी मिलता है
वही कहता है
कि मैंने लूज़ किया है
वज़न थोड़ा
या फिर बढ़ गया है
कुछ करो बाॅस
मैं २१ ग्राम का कल भी था
आज भी हूँ।
मैं छोटा हो गया हूँ
बड़ा हुआ है जब से घर।
आदमी और उसके ख़्वाब का घर
दोनों के बीच ख़्वाब भर की दूरी है
अव्वल तो हासिल ही नहीं
हासिल तो रहना मुश्किल
आदम और बाग़-ए-जन्नत के बीच
मुकेश और एंटीलिया के बीच
वही दूरी बनी रहती है
फूस के छप्पर को कंकरीट के ख़्वाब
ग्लास-क्रोम वाले को ग्रीन होम की चाह
कितनी मुहब्बत से मकान घर बनता है
जहाँ से देखते हैं हम नए मकानों को
नींव डालते हैं नए अरमानों के