सूखे शज़र को मौसम-ए-बहार चाहिए
आदमी को कागज़ के पैरोकार चाहिए
ज़िंदा हैं तो फिर होने का सबूत लाइए
मरने की तमन्ना है तो भी आधार चाहिए
पैग़ाम ये हर की दीवारों पे सजा दो
जा सारे सल्तनत में ये डंका बजा दो
मज़मून था ख़ुलासा या ख़त था खुला सा
क़ासिद को गिरफ्तार करो और सज़ा दो