धौर मर्दे, धौर मर्देनतन, धौरे मरदे
मनबढ़ुआ के बढ़ गइलै मन धौरे मरदे
भोली सूरत धोखा खाने को काफी है
उसके ऊपर ये भोलापन धौरे मरदे
दंगल है इस बात पे जंगल राज बहुत है
मंगल-मंगल कब था ये वन धौरे मरदे
दफा करो बेवफा भला क्या रफू करेंगे
सदियों से सदचाक है दामन धौरे मरदे
वैस्हैं जिनगी नाच नचावै है दिन रात
और सचमुच में टेढ़ा आंगन धौरे मरदे
भूखे-नंगे बच्चों से उम्मीद बहुत है
उच्च विचार और सादा जीवन धौरे मरदे
अच्छे दिन जब आएंगे तब देखेंगे
दिवास्वप्न में दीवानापन धौरे मरदे
अब हमको सब हरा हरा ही लौके है
आंखें देकर भागा सावन धौरे मरदे