आदमी चाह ले तो काम बड़ा कोई नहीं,
जर्फ़ जिंदा हो तो फिर जाम बड़ा कोई नहीं,
बस के इंसान को इंसान होना मुश्किल है,
बढ़ के इस से यहाँ इनाम बड़ा कोई नहीं!
हमको माजी के दरीचे में खड़ा रहने दो,
और फर्दा पर जो पर्दा है पड़ा रहने दो,
तुम्हारे तीर मेरे बदन पे बहुत फबते हैं,
ये जवाहर मेरे सीने पे जड़ा रहने दो!
हाथ है, मसलते हैं, सर है तो धुनते हैं,
गुण अवगुण सभी मन में ही गुनते हैं,
जो कभी लिहाफ-ए-एहसास में गांठें आएं,
अपनी माजी की रुई आप ही हम धुनते हैं!
ख्वाब तो ख्वाब हकीकत भी हम बुनते हैं,
फूल हो जाते हैं कांटे भी अगर चुनते हैं,
देख लेते हैं सब कानों से ही नाबीना,
और जो बहरे हैं आँखों से सब सुनते हैं!
यूँ तो मुकम्मल नज़्म ही है. कई बंद हैं, लेकिन शेर मुझे अच्छे लगे ज़यादा
बस कि इंसान को इंसान होना मुश्किल है,
बढ़ के इस से यहाँ इनाम बड़ा कोई नहीं!
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देख लेते हैं सब कानों से ही नाबीना,
और जो बहरे हैं आँखों से सब सुनते हैं!