सज़ा में मज़ा घोल के,
बिता लो तुम हंस बोल के
साँस ही टूटे तो कोई
छूटने की आस है
ज़िन्दगी इक जेल है
वो भी बिना पैरोल के
इसी में उलझे रहे ग़ालिब कि कैसे इस उलझन के ख़म निकलें
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म से पैरोल मिले तो हम निकलें
आप कहते वो पार्टी में गई,
मैं कहता हूँ कि बीमार है वो,
सब अपनी-अपनी मान्यता है!
रंगभेद के गहराने का
है अंदेशा उनका भी
गोरेपन की क्रीम बेचते
रहते हैं जो टीवी पर
मंडेला की मौत पे आया
इक संदेशा उनका भी