जिस बरगद के नीचे तुमने
देखी थी अनहद रूहानी रौशनी,
उसके नीचे तीरगी है,
इस क़दर कि कुछ दिखता नहीं
तुम्हारे ज्ञान का प्रकाश
दुनिया भर में
इक अंधेरा सा हमारे
ज़ेहन में, घर में
दिए तले की उसी स्याही में
हमने इस इतवार फिर पोता है
शांति की इमारत को,
भिक्षुओं के खून से
अहिंसा की इबारत को
बरगद के नीचे
कभी कुछ उगता नहीं
बारूद बो दिया
तो नया बोध उगा है
तुम्हारा बोध गया
हमारा अपराधबोध गया