वैसे तुम से है मुझे प्यार बहुत
मैं कुछ दिनों से हूँ बेज़ार बहुत
हुस्न ने जान की कीमत मांगी
महंगा है सच ये कारोबार बहुत
जिसको देखो तपा-तपा सा है
चढ़ा है इश्क का आज़ार बहुत
उनकी ज़ुल्फ़ों में कोई बात तो है
एक-एक ख़म में गिरफ़्तार बहुत
मेयार-ए-चश्म-ए-यार, क्या कहिए
मिकदार जो भी हो, खुमार बहुत
कमर में धार वो कि सीना चाक
दिल को सीने में भी अय्यार बहुत
रिबा-ए-दर्द का हिस्सा ना लिया
मियां तुम निकले ज़ियांकार बहुत
देख ली आपकी भी सरदारी
सर्द निकले मेरे सरकार बहुत
लहू से हाथ रंगे हैं जिस के
हर तरफ़ उसके तरफ़दार बहुत
ये सच नहीं कि ऐतबार नहीं
कर लिया हमने इंतज़ार बहुत
आँधियां ले गई सर से छत को
बारिशों के भी हैं आसार बहुत
बुलहवस बदमिज़ाज दुनिया में
आदमी हो गया लाचार बहुत
चमन समन हुआ बहार आई
आए खुशबू के खरीदार बहुत
गुलों से अपना खूं का रिश्ता है
खार क्यूँ खाएं जो हैं ख़ार बहुत
फिर वही मुश्किलें मुकाबिल हैं
अनार एक और बीमार बहुत
किस्सा-ए-दर्द मुख्तसर बेहतर
कौन सुनता हैं यहाँ यार बहुत
अब यहां किस शेर का जिक्र करें। हर शेर लाजवाब है और नोट करने वाला है।
kamaal