(राम राघव रक्षमाम जपने वाले राम को बचाने को उतावले हैं. राम जेठमलानी के जीभ काटने वाले को ११ लाख इनाम की घोषणा हो चुकी है. धर्मो रक्षति रक्षितः की दलील दी जारी है. बिना यह समझे कि राम की रक्षा के लिए उठे हाथ यह बताते हैं कि राम स्वयं की रक्षा करने के लिए सक्षम नहीं. त्रेता नहीं है, कलियुग ही है.)
अयोध्या इंतज़ार में थी
नैनों के दीप जलाए
लंका पर विजयी होकर
लॉर्ड राम जब घर आए
मर्यादा पुरुषोत्तम हैं
देवों में उत्तम हैं
जग में जाते पूजे हैं
पर एक राम दूजे हैं
‘ऑब्जेक्शन मिलॉर्ड’
वकील राम बोल पड़े
अयोध्यापति श्रेष्ठ होंगे
पति आप आम थे
गर्भवती पत्नी की,
यूँ किसी के कहने पर
अग्निपरीक्षा ले ली,
कैसे आप राम थे?
अब जवाब कौन दे,
राम तो रहे नहीं
राम के वकील सब
उठ खड़े हुए वहीं
कण-कण में बसते हैं
उनपर आप हँसते हैं
राम के अस्तित्व पर
फब्तियां कसते हैं
राम के नाम पर
जान भी दे सकते हैं
दूसरे किसी राम की
जान ले भी सकते हैं
राम की शरण में ही
जो सुरक्षा पाते हैं
डर जब सताता है
राम नाम गाते हैं
वो ही सबक राम का
राम को सिखाएंगे
जो सबको बचाता है
उनको ये बचाएंगे
राम की कथाओं में
राम राज करते हैं
हृदय वाले राम का
वनवास अभी बाकी है
मंदिरों में मूर्ति है,
अयोध्या के स्वामी की
मन में जो रावण है
उसका नाश बाकी है
मुंह में ही राम है,
इसलिए ये क्रोध है
दिल में राम होने का
एक अलग ही बोध है
एक बार लंकापति
रो रहे थे आँगन में
मंदोदरी ने पूछ लिया
क्या छुपाया है मन में
लंकापति बोले प्रिये
किसी को बताना नहीं
क्या मैं कुरूप हूँ?
सच को तुम छुपाना नहीं
पत्नी बोले ज्ञान में,
रूप में या रंग में
तुम किसी से कम नहीं
रहो किसी ढंग में
फिर क्यूँ वो सीता मुझे
देखती बतियाती नहीं?
ऐसी कौन सी विद्या
है जो मुझे आती नहीं
कहा ये मंदोदरी ने
तुम कुछ भी कर सकते हो
चाहो तो राम का
रूप भी धर सकते हो
बोल उठे लंकापति,
भोली हो तुम भी प्रिये
ये उपाय ना करते
सब उपाय हमने किए
रूप धरा उसका पर,
आया नहीं काम में
ऐसी कुछ बात है
राजा श्री राम में
राम मैं बना जैसे
आँख मेरी भर आई,
हर पराई स्त्री में
अपनी माँ नज़र आई
शायद इस मर्म का
ही मर्यादा नाम है,
पुरुष उत्तम हो जाए
मन में अगर राम है
राम है जुबान पर तो
काटो जुबान राम की
और हृदय में हो तो,
दुनिया है राम की
राम थे भी या नहीं
इस जटिल प्रश्न का
उत्तर इक नाम है
जो भी है, राम है
या तो राम सबके हैं,
या हैं एक पंथ के
या तो राम राजा थे
पात्र किसी ग्रन्थ के
पात्र की परिभाषा है,
रिक्त पात्र होता है,
जो है भरा पहले से,
वह अपात्र होता है
रिक्त पात्र को कोई
गंगाजल से भरता है,
और कोई चाहे तो,
उसमें विष धरता है
पूछो कि तुम्हारे लिए
क्या राम एक पात्र हैं?
हैं दया के सागर या
राम नाम मात्र हैं?
राम के आरोपों का
राम ही उत्तर देंगे,
रामभक्तो रहने दो,
राम रक्षा कर लेंगे!
ab to raamjethmalani ka raamnaam satya hai